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राजस्थान के ब्ल्यू सीटी नाम से विख्यात जोधपुर के निर्माता और जोधपुर से संचालित मारवाड़ रियासत के क्षत्रिय रत्न महाराजा सर उम्मेद सिंह जी आजादी से पहले भी नए भारत के सितारे थे। आज से 80 साल पहले 6 जून 1945 को महाराजा उम्मेद सिंह जी का देहावसान हुआ था। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर भारत के प्रमुख न्यूज मीडिया संस्थान शाइनिंग टाइम्स न्यूज मीडिया के प्रमुख सोशल वेंचर शाइनिंग क्षत्रिय टाइम्स की और से प्रस्तुत है विशेष रिपोर्ट।
लेफ्टिनेंट-जनरल एचएच श्री राज राजेश्वर सरमद-ए-राजा-ए-हिंदुस्तान महाराजाधिराज महाराजा सर उम्मेद सिंह बहादुर, (8 जुलाई 1903 – 9 जून 1947), जिन्हें उम्मेद सिंह भी कहा जाता है, वर्ष 1918 से 1947 तक अपनी मृत्यु तक मारवाड़ के ऐतिहासिक राठौड़ राजवंश के जोधपुर राज्य के महाराजा थे।
8 जुलाई 1903 में जन्मे महाराजा उम्मेद सिंह जी जोधपुर के एचएच महाराजा सर सरदार सिंह के दूसरे पुत्र थे। अपने बड़े भाई महाराजा सर सुमेर सिंह की 1918 में एक बीमारी से असामयिक मृत्यु के बाद वे जोधपुर के महाराजा बने। महाराजा होने के बाद भी वे जन सेवक की तरह अपनी प्रजा की ताउम्र फिक्र करते थे।
1922 में महाराजा उम्मेद सिंह जी ने प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग एडवर्ड VIII ) के सहायक के रूप में कार्य किया। 1923 में गवर्नर जनरल सर लॉर्ड रीडिंग द्वारा औपचारिक रूप से उन्हें महाराजा के रूप में घोषित किया गया था।
सन् 1923 का वो साल जिसने मारवाड़ स्टेट को समृद्ध और शक्तिशाली बनने का मौका दिया, तत्कालीन वायस रॉय लार्ड रीडिंग ने महाराजा उम्मेद सिंह जी को सम्पूर्ण शासन की प्रतीक तलवार भेंट की, उस जमाने में वो आजादी के बराबर हुआ करता था। तब से जोधपुर ने महाराजा उम्मेद सिंह जी के नेतृत्व में करवट लेना चालू किया।
अपने शासनकाल के दौरान, सर उम्मेद सिंह ने जोधपुर राज्य सेना और न्यायिक विभाग में सुधार और पुनर्गठन किया, प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए एक योजना शुरू की, भूमि राजस्व निपटान को संशोधित किया और राज्य कर्मचारियों के लिए राज्य पेंशन और भविष्य निधि की स्थापना की।
रियासत में भयंकर सूखा पड़ा था, और रोज़गार की सख़्त ज़रूरत थी। सन 1928 में, हवाई अड्डे के साथ-साथ उम्मेद भवन पैलेस के निर्माण से ही जोधपुर के निवासियों को रोज़गार के मौक़े मिले थे।
महज़ 23 साल की उम्र में महाराजा उम्मेद सिंह में जोधपुर में भारत का प्रथम फ़्लाइंग क्लब, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा उन्होंने विकसित कर दिया था जिससे जोधपुर की ख्याति देश दुनिया में फैली थी। जहां से उस दौर की जानीमानी इम्पीरियल एयरवेज, KLM और एयर फ्रांस का जोधपुर हवाई अड्डे पर आना एक आम बात थी । कुल 23 एयर स्ट्रिप से महाराजा जोधपुर, मारवाड़ में सम्पूर्ण शासन को संचालित करने लगे। महाराजा के स्वयं और जनता के लिए फ्लाइंग क्लब का शुरू होना जोधपुर की समृद्धि को दिखाता है।
जोधपुर में आजाद भारत के अंतिम महल के रूप में छीतर पैलेस के निर्माण को करवा एक इतिहास रचा था। ये वो दौर था जब भीषण गर्मी और अकाल से पीड़ित जनता महाराजा से सहयोग मांगने गई और काम के बदले अनाज और राहत मांगी।
जनता ने महाराजा के निर्देशन और अंग्रेज़ वास्तुकार के कार्य को अंजाम दिया और निर्मित हुआ आज का उम्मेद भवन पैलेस।
जोधपुर में उस अकाल के दौरान कई बड़े निर्माण हुए जिसमें जोधपुर जनाना अस्पताल जो अब उम्मेद अस्पताल के नाम से जाना जाता है। आज का महात्मा गांधी अस्पताल जिसका निर्माण शहर के लिए वरदान साबित हुआ।
जोधपुर को न्याय की राजधानी बनाने के लिए निर्मित राजस्थान उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ भी महाराजा उम्मेद सिंह जी के शासन का में बनी।
रेतीली तप्त गर्मी में बच्चों मनोरंजन के लिए महाराजा उम्मेद सिंह जी ने जोधपुर में चिड़ियाघर का निर्माण करवाया।
महाराजा उम्मेद सिंह जी के समय में 1930 के दौर में ही जोधपुर में बिजली, पानी और सड़कों के जाल बिछना शुरू हुए।
राजस्व बढ़ाने के लिए महाराजा उम्मेद सिंह जी ने टैक्स प्रणाली को सुदृढ़ किया।
महाराजा उम्मेद सिंह जी ने रेलवे स्टेशन का निर्माण कर आज के पाकिस्तान और तब के बम्बई राज्य को जोड़ने वाली साथ ही सिंध से कराची तक जाने वाली रेलवे लाइन पर एक बड़ा निवेश किया।
जोधपुर की प्यास बुझाने के लिए अपने अंतिम दौर में महाराजा उम्मेद सिंह जी ने जवाई बांध के निर्माण की नींव रखी और उस से पहले 1936 के दौर में जोधपुर में फ़िल्टर यूनिट स्थापित की।
जोधपुर में तब की और आज भी सबसे सुरक्षित जेल का निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह जी ने करवाया।
जोधपुर के फ्लाइंग किंग थे महाराजा उम्मेद सिंह जी
जोधपुर के फ्लाइंग किंग नाम से जाने जाने वाले महाराजा उम्मेद सिंह जी को बचपन से ही विमान उड़ाने का शौक़ था। वे पत्रिकाओं तथा अख़बारों के ज़रिये विमानन के क्षेत्र की ताज़ा जानकारियां हासिल करते रहते थे। उनका सपना था कि उनका जोधपुर भी एक दिन विमानन के क्षेत्र में नाम हासिल करें।
पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह जी ने सन 1910 में निजी विमान खरीद लिया था इसी के साथ वे भारत में निजी विमान रखने वाले पहले व्यक्ति बन गये थे। महाराजा भूपिंदर सिंह ने उड़ान की बुनियादी बातें और तकनीक को समझने में उम्मेद सिंह जी की मदद की । सन 1920 के दशक के अंत में जोधपुर और उत्तरलई (अब बाड़मेर ज़िले में) के आसपास हवाई अड्डा बनाने का काम शुरू हो गया। तब तक उम्मेद सिंह जी को दिल्ली फ्लाइंग क्लब से निजी विमान रखने की आधिकारिक अनुमति भी मिल गई थी। इस तरह जोधपुर रियासत, अपना ख़ुद का फ़्लाइंग क्लब स्थापित करने वाली पहली भारतीय रियासत बनने की तरफ़ अग्रसर हो गयी थी।
महाराजा उम्मेद सिंह जी ने सन 1931 में जोधपुर फ़्लाइंग क्लब की शुरूआत की थी, जिसे भारत में विमानन के क्षेत्र में किये गये पहले प्रयासों में से एक माना जाता है। जोधपुर फ़्लाइंग क्लब की वजह से न केवल जोधपुर के आसमान में उड़ान भरने का मार्ग खुला, बल्कि इसने अंतरराष्ट्रीय हवाई उड़ानों को भारत लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस क्लब ने द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) और यहां तक कि भारतीय वायु सेना के पायलटों की ट्रैनिंग में भी महत्वपूर्ण योगदान किया।
29 साल की जन सेवा के बाद 9 जून 1947 को माउंट आबू में 43 वर्ष की आयु में महाराजा उम्मेद सिंह जी का निधन हो गया। बाघ के शिकार के दौरान एपेंडिसाइटिस के एक तीव्र दौड़े से उनकी मृत्यु हो गई। महाराजा उम्मेद सिंह जी का यह वक्तव्य आज भी क्षत्रिय समाज के लिए आदर्श वक्तव्य था। उन्होंने क्षत्रिय के बारे में कहा था, “इस जाति में एक खूबी है, बढ़ना शुरू करे तो बादशाह तक और टूटना शुरू करे तो भिखारी तक भी हो सकता है लेकिन दोनों स्थिति में वह राजपूत ही रहेगा। दुनिया मे सब कुछ गंवा दिया तो मान लेना थोड़ा बहुत गंवाया है लेकिन जाति ही गंवा दी तो सब कुछ गंवा दिया।”
महाराजा उम्मेद सिंह जी को मिले सम्मान
दिल्ली दरबार रजत पदक-1911
प्रिंस ऑफ वेल्स विजिट मेडल-1922
नाइट कमांडर ऑफ़ द रॉयल विक्टोरियन ऑर्डर (KCVO)-1922
नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर (जीसीआईई)-1930
किंग जॉर्ज पंचम रजत जयंती पदक -1935
नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया (जीसीएसआई)-1936 (केसीएसआई-1925)
किंग जॉर्ज VI राज्याभिषेक पदक -1937
ग्रैंड क्रॉस ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ड्रैगन ऑफ़ अन्नाम -1940
अफ्रीका स्टार -1945
युद्ध पदक 1939-1945 -1945
भारत सेवा पदक -1945
नाइट ऑफ द ऑर्डर ऑफ सेंट जॉन (KStJ)-1946
हलवद-ध्रांगध्रा राज्य राज्याभिषेक पदक, प्रथम श्रेणी-1948 (मरणोपरांत)
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