
क्षत्रिय समाज के कछवाह वंश के खंगारोत शाखा के प्रवर्त्तक महाराव खंगार जी की 500वी जयंति 22 मार्च को जयपुर के पास नरायणा दूदू में आज मनाई जा रही है। जम्मू कश्मीर में कछवाह वंश के महाराज कुमार विक्रमादित्य सिंह जी महाराज खंगार जी की 500 वी जयंति के मुख्य अतिथि होंगे। गौरतलब है कि महाराव खंगार जी के छोटे भाई रामचन्द जी ने 1586 में जम्मू कश्मीर में अपना राज्य स्थापित किया था। वर्तमान में जम्मू कश्मीर का राज परिवार उन्ही के वंशज है।
महाराव खंगार जी की मनाई जाने वाली 500वी भव्य जंयति में श्रीमद दादू पीठाधीशवर आचार्य प्रचर श्री ओमप्रकाश दास जी महाराज, राजश्री श्री 1008 समता राम जी महाराज, सांसद राव राजेंद्र सिंह जी, भाजपा राजस्थान प्रचार महामंत्री श्रवण सिंह जी बगड़ी और पूर्व केबिनेट मंत्री प्रतापसिंह जी खाचरियावास विशिष्ठ अतिथि होंगे।
श्री राष्ट्रीय राजपूत कुरीति उन्मूलन संस्थान के अध्यक्ष दिलीप सिंह जी महरोली ने शाइनिंग क्षत्रिय टाइम्स को बताया कि क्षत्रिय पुंजों स्मरण करने से समाज में क्षत्रित्व को प्रेरणा मिलती है। दिलीप सिंह जी ने जानकारी दी कि महाराव खंगार जी की जंयति समारोह में उन्हें भी आमंत्रित किया है।
गौरतलब है कि कछवाहों के खंगारोत शाखा के प्रवर्तन महाराव खंगार जी जगमाल जी कछवाह के जेष्ठ पुत्र एव आमेर नरेश राजा पृथ्वीराज जी के पौत्र थे। राव खंगार जी का जन्म सन 1524 विक्रम संवत 1581 चैत्र मास कृष्ण पक्ष को शीतला अष्टमी को आमेर के किले में हुआ था।
राजा पृथ्वीराज जी की 9 रानियों में से उनकी पटरानी आपूर्वी देवी (बालांबाई) बीकानेर के राजा लूणकरण की बेटी थी जो की खंगार जी की दादी थी। जगमाल जी कछवाह के देहांत के बाद संवत 1639 (1582ई) को महाराज खंगार जी नरैना की राजगद्दी पर बैठे। राव खंगार जी की माता का नाम आसलदेव सोडा जो अमरकोट वर्तमान में पाकिस्तान में है, की सोडा राजकुमारी थी।
महाराव खंगार जी पांच भाई थे। बड़े महाराव खंगार जी, उनके बाद सारंग देव जी, जय सिंह जी, सांग जी और सबसे छोटे रामचंद्र जी जो 1586 ई. में जम्मू कश्मीर चले गए। वर्तमान में जम्मू कश्मीर का राज परिवार उन्ही के वंशज है।
महाराव खंगारजी एक कुशल योद्धा थे जिसका परिचय उन्होंने कई युद्धों में दिया। वर्तमान में महाराव खंगार जी की छतरी मांडल में स्थित है जो उनके पोते भोजराज जी ने संवत 1711 में 12 खंभों की बनाई। मान सिंह जी के आदेश पर महाराव खंगार जी ने कई मंदिरों का पुन: निर्माण करवाने में सहयोग किया।
महाराव खंगार जी की मृत्यु माघ सुदी शुक्ल पक्ष पंचमी वि.स.1640 इ.स.1583 में हुई।
वीरता की भूमि, शौर्य की कहानी, जहाँ बहती है खून में बलिदान की रवानी।
खंगारोत वंश की महिमा अपार, यही है वीरों की जन्मस्थली, संस्कारों का दरबार।
जय श्री खंगार ! जय राजपुताना !